इस पोस्ट में भारतीय बैंकिंग सिस्टम यानी Indian Banking System के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। बैंकिंग प्रणाली देश की अर्थव्यवस्था की जीवन रेखा है। बैंक वित्तीय संस्थान होते हैं जो जमा और ऋण का कार्य करते हैं। ये देश की मौद्रिक स्थिति को व्यवस्थित बनाए रखते हैं। बैंकिंग सिस्टम किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए काफी अहम होता है।
संपूर्ण वित्तीय प्रणाली बैंकिंग क्षेत्र पर निर्भर करती है। बुनियादी ढांचे, वित्तपोषण और निवेश में इसका महत्तपूर्ण योगदान हैं। विश्व की अर्थव्यवस्थाओं की रीढ़ बैंकिंग क्षेत्र है। किसी भी देश का आर्थिक विकास और वृद्धि (Growth) उसके बैंकिंग उद्योग से बहुत प्रभावित होती है। ऐसा माना जाता है कि विश्वव्यापी बैंकिंग क्षेत्र में 20 ट्रिलियन डॉलर से अधिक का निवेश किया गया है। इन क्षेत्रों में बैंकों की गतिविधियों में व्यापार, वित्त, बीमा और निवेश शामिल हैं।
बैंको के कार्य (Functions of Banks)
मौद्रिक कार्य (Monetary Functions)
इसमे रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट शामिल हैं। रेपो रेट RBI द्वारा बैंकों को धन उधर पर लागने वाले ब्याज की दर होती है। जब RBI के पास पैसे की कमी होती है तो RBI(रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) वाणिज्यिक बैंकों से पैसे उधार लेता है। जिस दर पर उधार लिया जाता है उसे रिवर्स रेपो रेट कहते है।
मार्जिनल स्टैंडिंग फेसिलिटी (Marginal Standing Facility)
मार्जिनल स्टैंडिंग फेसिलिटी यानी MSF, यह एक विंडो है। जब बैंकों के बीच लिक्विडिटी पूरी तरह से सूख जाती है तो MSF का उपयोग निर्धारित बैंकों द्वारा RBI(रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) से रात्रि भर के लिए उधार लेने के लिए होता है।
ओपेन बाजार आपरेशन (Open Market Operation)
यह RBI (रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) द्वारा किये जाने वाले ओपेन बाजार आपरेशन हैं। इसमे गवर्नमेंट सेक्युर्टी को खरीदा या बेचा जाता है। इसका उद्देश्य बाजार में रुपय की लिक्विडिटी स्थितियों को स्थायी करने के लिए किया जाता हैं।
अन्य कार्य (Other Functions)
जमा स्वीकार करना (Accepting Deposits)
बैंक जनता से जमा स्वीकार करता है। ये जमा विभिन्न प्रकार की हो सकती हैं, जैसे कि बचत जमा (Saving Deposit), सावधि जमा (Fixed Deposit), चालू जमा (Current Deposit), आवर्ती जमा (Recurring Deposit)
ऋण और अग्रिम का देना (Loans & Advances)
बैंक व्यापार समुदाय और अन्य लोगों को ऋण देता है। इसकी दर जमा की दर से अधिक होती है। ऋण की दर और जमा दर के बीच का अंतर बैंक का लाभ होता है।
बैंकों के सेकंडरी कार्य (Secondary Functions of Banks)
लेटर्स ऑफ क्रेडिट(LOC), ट्रैवलर्स चेक आदि जारी करना। बैंक लॉकर द्वारा मूल्यवन वस्तुओं, महत्वपूर्ण दस्तावेज़ और को सुरक्षित रखना। एक खाते से दूसरे खाते में और एक शाखा से दूसरी शाखा में पैसे भेजना। चेक, पे आर्डर, डिमांड ड्राफ्ट जारी करना।
बैंकों के प्रकार (Types of Banks)
हमारे देश में अलग-अलग लोगों की वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कार्य करने वाले विभिन्न प्रकार के बैंक हैं। कार्यों के आधार पर, भारत में बैंकिंग संस्थानों को निम्नलिखित प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है।
केंद्रीय बैंक (Central Bank)
इसे देश की बैंकिंग प्रणाली को मार्गदर्शन और विनियमन की जिम्मेदारी सौंपी जाती है। ऐसा बैंक सामान्य जनता के लिए नहीं होता है। यह अकेले सरकार के बैंक के रूप में कार्य करता है। सभी अन्य बैंकों की जमा खाता रखता है और आवश्यक होने पर अन्य बैंकों को पैसे उधार देता है। केंद्रीय बैंक अन्य बैंकों को किसी भी समस्या होने पर मार्गदर्शन प्रदान करता है। इसलिए इसे बैंकों का बैंक भी कहा जाता है।
वाणिज्यिक बैंक (Commercial Banks)
ये बैंकिंग संस्थान हैं जो जमा स्वीकार करते हैं और अपने ग्राहकों को छोटी अवधि के ऋण और अग्रिम प्रदान करते हैं। वाणिज्यिक बैंकों के तीन प्रकार होते हैं।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (Public Sector Banks)
जहाँ भारत सरकार या रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की अधिकांश हिस्सेदारी होती है, जैसे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, कॉर्पोरेशन बैंक, बैंक ऑफ बड़ोदा और देना बैंक आदि।
निजी बैंक (Private Bank)
इस बैंक के अधिकांश हिस्सेदारी साझा पूंजी होती है। जिनका प्रबंधन प्राइवेट व्यक्तियों के द्वारा किया जाता है। इन बैंकों को लिमिटेड लायबिलिटी वाली कंपनियों के रूप में पंजीकृत किया जाता है। उदाहरण: जम्मू और कश्मीर बैंक लिमिटेड, बैंक ऑफ राजस्थान लिमिटेड आदि।
विदेशी बैंक (Foreign Bank)
ये बैंक एक विदेशी देश में पंजीकृत होते हैं और वह अपनी शाखाएँ हमारे देश में संचालित करते हैं, उदाहरण: हॉंगकॉंग और शंघाई बैंकिंग कॉर्पोरेशन, सिटीबैंक आदि।
विकास बैंक (Development Bank)
व्यापार में अक्सर मशीनरी और उपकरण की खरीद के लिए मध्यम और दीर्घकालिक पूंजी की आवश्यकता होती है। ताकि नवीनतम प्रौद्योगिकी का उपयोग कर सकें। विस्तार और आधुनिकीकरण के लिए इस तरह की वित्तीय सहायता दी जा सकती है। उदाहरण: इंडस्ट्रियल फाइनेंस कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (आईएफसीआई) और राज्य वित्तीय निगम (एसएफसी) भारत में विकास बैंकों के उदाहरण हैं।
सहकारी बैंक (Cooperative Bank)
जब एक कोपेरटिव सोसाइटी बैंकिंग कार्य में शामिल होती है, तो उसे सहकारी बैंक कहा जाता है। किसी भी सहकारी बैंक को एक सोसाइटी के रूप में कार्य करना होता है, जिसे राज्य के सहकारी सोसाइटी के पंजीकरण अधिकारी की सामान्य पर्यवेक्षण के तहत काम करना होता है। बैंकिंग कार्य के संदर्भ में, सहकारी बैंको को भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित नियमो का पालन करना होता है। हमारे देश में काम करने वाले सहकारी बैंकों तीन प्रकार होते हैं:
प्राथमिक क्रेडिट सोसाइटिज (Primary Credit Societies)
गाँव या शहर के स्थानीय ऋणी और और बिना-ऋण वाले ग्राहक सदस्यों के साथ आने से प्राथमिक क्रेडिट सोसाइटिज गठित होते हैं।
केंद्रीय सहकारी बैंक (Central Cooperative Bank)
ये बैंक जिला स्तर पर काम करते हैं, जिनमें स्थानीय क्रेडिट सोसाइटिज का कुछ हिस्सा उनके जिले से जुड़ा होता है।
राज्य सहकारी बैंक (State cooperative Bank)
ये सभी राज्यों में सभी सहकारी बैंकों के उच्चतम स्तर के सहकारी बैंक होते हैं।
स्पेशलाइज्ड बैंक (Specialised Bank)
कुछ बैंक होते हैं जो किसी विशेष क्षेत्र या गतिविधि के व्यवसाय की आवश्यकताओं को पूरा करने और समग्र समर्थन प्रदान करने में विशेषज्ञ होते हैं। वे किसी विशेष क्षेत्र या गतिविधि में शामिल होते हैं और इस तरह से स्पेशलाइज्ड बैंक कहलाते हैं। इंडिया एक्सपोर्ट इम्पोर्ट बैंक (EXIM: एक्जिम बैंक), स्मॉल इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया (SIDBI: सिडीबी) और नाबार्ड इस प्रकार के बैंकों के उदाहरण हैं।
इंडिया एक्सपोर्ट इम्पोर्ट बैंक (एक्जिम बैंक) यह बैंक निर्यातकों और आयातकों को ऋण प्रदान करता है और अंतरराष्ट्रीय बाजार के बारे में जानकारी भी प्रदान करता है।
स्मॉल इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया (सिडीबी) का उद्देश्य और मुख्य ध्यान स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज को प्रोत्साहित करना और वित्त प्रदान करना है, यह छोटे पैमाने के उद्योगिक इकाइयों की आधुनिकीकरण, नई प्रौद्योगिकी का उपयोग और बाजार गतिविधियों के लिए वित्तीय सहायता करता है।
नाबार्ड(NABARD)एक राष्ट्रीय बैंक है। जो कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों के वित्तीय विकास के लिए सेवाएं प्रदान करता है। यह केंद्रीय स्तर पर कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है और कृषि, छोटे उद्योग, गाँवों में उद्योग, हस्तशिल्प और साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में सहायक आर्थिक गतिविधियों के लिए विशेष रूप से सहायता प्रदान करता है।
रीजनल रूरल बैंक्स(RRB)
ये कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों को विशेष रूप से समर्थन प्रदान करते हैं। इन बैंकों को 1975 में स्थापित किया गया था और इन्हें रीजनल रूरल बैंक एक्ट 1976 के तहत पंजीकृत किया गया है। इन बैंकों का संयुक्त उद्यम केंद्र सरकार (50%), राज्य सरकार (15%) और एक वाणिज्यिक बैंक (35%) होता है।
पेमेंट बैंक (Payment Bank)
पेमेंट बैंकअन्य बैंकों की तरह ही होते हैं लेकिन इनका स्केल छोटा या सीमित होता है। इन बैंकों का क्रेडिट रिस्क नहीं होता है और इनके द्वारा लोन नहीं दिया जा सकता है या क्रेडिट कार्ड नहीं जारी किया जा सकता है। ये केवल मांगी गई जमा जमा पर अमल कर सकते हैं। जैसे कि बचत और चालू खाताएँ, किंतु सावधि जमा नहीं कर सकते। इन बैंकों को अन्य बैंकिंग वित्तीय सेवाओं का सहारा लेने के लिए सब्सिडियरी स्थापित करने की अनुमति नहीं होती है।
बेड बैंक (Bad Bank)
यह एक प्रकार का आरसी या एसेट मैनेजमेंट कंपनी होता है। जो कमर्शियल बैंकों के NPA लोन को संभालता है और NPA लोन को वसूलने में मदद करता है। इस बैंक का उद्देश्य बैंकों की बैलेंस शीट को साफ करने और बुरे कर्जों को हल करने में मदद करना होता है। NPA लोन की अधिग्रहण आमतौर पर कर्ज की बुक मूल्य से कम होता है। यह बैंक जितना अधिक से अधिक संभव हो सके NPA लोन वापस पाने का प्रयास करता है।
NPA(गैर निष्पादित संपत्तियां)
एनपीए बैंक की कोई भी संपत्ति(लोन) होती है जो कोई आय नहीं पैदा कर रही होती है। इसका सबसे बड़ा खतरा बैंक के लिए तब होता है जब लोग जो ऋण लेते हैं और उसका भुगतान नहीं करते हैं। जिसके कारण ऋण संपत्तियों के मूल्य कम हो जाते हैं। NPA कम करने के लिए सबसे साधारण उपाय बुरे कर्जों को पुनः प्राप्त करना होता है। सरकार द्वारा कई कदम उठाए गए हैं जैसे “इन्सॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड” जो बैंकों को कर्जदारों से कर्ज वसूलने को आसान बनाने के लिए था।
NPA लोन ले किए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने भी कई उपायों को प्रस्तुत किया है, जैसे कॉर्पोरेट डेब्ट रीस्ट्रक्चरिंग (सीडीआर), जोइंट लेंडर्स फोरम की स्थापना और बैंकों से फंसे कर्जों की वास्तविक तस्वीर प्रकट करने की अनुमति देना।
बैंकिंग प्रणाली में सुधारों से संबंधित कुछ समितियां
वीमल जालन – नई बैंक लाइसेंस के लिए।
नचिकेत मोर – छोटे व्यवसायों और कम आय वाले परिवारों के लिए वित्तीय सेवाओं की व्यापकता की जांच के लिए।
के.वी. कामथ – माइक्रो, छोटे और मध्यम उद्यमों के लिए वित्तीय संरचना की जांच के लिए।
गार्ड गिल 1969 – लीड बैंकिंग प्रणाली।
उषा थोरड – उत्तर पूर्व क्षेत्र के लिए वित्तीय समावेशन वित्तीय क्षेत्र योजना की जांच के लिए।
उर्जित पटेल – वर्तमान मुद्रा नीति संरचना की जांच के लिए।
एन.के. सिंह – वित्तीय जिम्मेदारी और बजट प्रबंधन अधिनियम की समीक्षा के लिए।
FAQs
Q : रीजनल रूरल बैंक्स(RRB) में किसकी कितनी हिस्सेदारी होती है ?
Ans : इन बैंकों का संयुक्त उद्यम केंद्र सरकार (50%), राज्य सरकार (15%) और एक वाणिज्यिक बैंक (35%) होता है।
Q : मार्जिनल स्टैंडिंग फेसिलिटी क्या होती है ?
मार्जिनल स्टैंडिंग फेसिलिटी यानी MSF, यह एक विंडो है। जब बैंकों के बीच लिक्विडिटी पूरी तरह से सूख जाती है तो MSF का उपयोग निर्धारित बैंकों द्वारा RBI(रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) से रात्रि भर के लिए उधार लेने के लिए होता है।
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